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बचपन का जमाना

Ubharata Kavi aur Prakriti Mitra
Ubharata Kavi aur Prakriti Mitra
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बचपन का जमाना भी अजीब होता था,
न कोई अमीर न कोई गरीब होता था,
न सोने का वक्त न जागने का वक्त होता था,
हर एक इंसान अपने में मौला मस्त होता था,
बचपन का जमाना भी अजीब होता था।

शादी क्या है नहीं जानते थे,
लेकिन गुड्डे-गुड़िया की शादी जरूर करते थे,
जिसमे हर एक दोस्त सरीक होता था,
बचपन का जमाना भी अजीब होता था।

सबके पास अपने घोड़े होते थे,
सबके पास अपना अपना हाथी होता था,
कागज की नौका ही सही,
हर एक अपने में नाविक अमीर होता था।
बचपन का जमाना भी अजीब होता था।

क्रिकेट का खेल और नियम भी अजीब होता था,
हर एक बच्चा अपने में एक सचिन होता था,
पहले वही बैटिंग करता था, जिसके पास खुद का बैट होता था,
बचपन का जमाना भी अजीब होता था।

देर तक खेलने का भी अपना शौक होता था,
पापा के हाथो पिटाई का डर,
तो माँ के दुलार का भी अपना असर होता था,
होमवर्क अधूरा तो दोस्तों से कॉपी में भी मजा आता था,
क्लास के बाहर पनिशमेंट में भी,
दोस्तों के साथ मौज मस्ती का दौर होता था,
बचपन का जमाना भी अजीब होता था।

पतंगबाजी का भी अपना शौक होता था,
उडती पतंगों को देखने में लड़खड़ाने का डर भी होता था,
उन कटी पतंगो को पाने के लिए दौड़ लगाने में मजा आता था,
पतंग के लिए दोस्तों से लड़ने और रूठने का दौर होता था,
चल तू रखले, नहीं तू रख ले में भी प्यार भरपूर होता था,
बचपन का जमाना भी अजीब होता था।

बचपन से जवान होने के सपने में खुश होते थे,
नकली दाढ़ी मुछों को रख कर रौब दिखाने का भी दौर होता था,
पापा के रेजर से दाढ़ी बनाने का अपना मजा होता था,
पापा के देखने के बाद पिटाई का भी डर लगा होता था,
पापा को ऑफिस जाते देख,
ऑफिस जाने के सपने देखने का भी अपना शौक होता था,
बचपन का जमाना भी अजीब होता था।

जवानी का लालच देकर बचपन ने भी अजीब खेल दिखाया,
सभी छोटी छोटी चीजों को हमसे दूर कर हमे जवाँ तो बनाया,
पैसों के लालच में बचपन के हँसीं पलों को हमसे छिनवाया,
सभी यार दोस्तों को हमसे दूर करवाया,
पहले बातें होती थी की चल टाइम पास करने का प्लान बनाते हैं,
अब दोस्तों से कहते हैं की यार चल मिलने का प्लान बनाते हैं.

अब सोचता हूँ तो लगता है की बचपन भी कितना खुशगवार होता था,
कुछ भी हो संग तेरे और मेरे अपना यार और परिवार होता था,
अब तो पैसों के कमाने में हम सब मस्त हो गये,
सारे मस्त कलंदर यार अब पूर्णतया व्यस्त हो गए,
काश समय का पहिया फिर पीछे घूम सकता,
हम फिर से बचपन की हँसीं गलियों में सैर करते,

लेकिन जानते हैं हमसब की गुजरा हुआ समय लौट कर नहीं आता है,
बस उस दौर की यादें ही अठखेलियाँ करती रहती हैं,
इसीलिए कहा गया है की अजीब ही सही लेकिन
बचपन का जमाना अपने आप में सबसे हसीन और अलमस्त होता था.

रचयिता : आशुतोष कुमार द्विवेदी “आशु”

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